काले रंग को शनि ग्रह से जोड़कर शुभ कामों में त्यागने की धारणा बना दी है जो ठीक नहीं है. शनि, इन्साफ के देवता हैं. वह केवल काले कर्मों से कारण पीड़ा देते हैं. काले रंग की वजह से नहीं. विज्ञान के मुताबिक काला रंग सबसे अधिक ऊर्जा सोखने वाला रंग है. वहीं, सफेद रंग सबसे अधिक ऊर्जा परिवर्तित करने वाला रंग होता है. किसी भी तरह की ऊर्जा को सबसे कम सोखता है.
इसी तरह हम नजर से बचने के लिए किसी देवालय से, साधु, संत और ऋषि द्वारा काला धागा बंधवाते हैं, क्योंकि उनकी सकारात्मक ऊर्जा अधिक समय तक काले रंग में रह सकती है. बच्चों के लिए मां ही भगवान होती हैं. सबसे अधिक वात्सल्य से भरी होती हैं, इसीलिए उनके हाथ का लगाया काला टीका बच्चों की रक्षा करता है. ये ही वजह है कि जब आप सत्संग, प्रवचन, देवदर्शन और किसी से शिक्षा प्राप्त करने जाए तो काली टोपी का इस्तेमाल करें तो आप वहां की सकारात्मक ऊर्जा को अधिक संचित कर पाते हैं और लंबे समय तक इस्तेमाल कर पाते हैं.
जब हम किसी शोक सभा में जाते हैं तो सफेद कपड़े पहनकर जाते हैं. जिससे वहां की शोकाकुल भावनाएं हम में न आएं. चिकित्सक का एप्रीन भी सफेद रंग का होता है. जिससे रोंगों के असर का उन पर कम हो. इसी तरह विमान और जहाज चलाने वाले ही सफेद कपड़े पहनते हैं. जिससे सूर्य के ताप का कम कम से कम अवशोषण हो.
इसी तरह जैन संत, साध्वियां, ईसाई धर्म में पादरी और नन, जो संसार से विरक्त होने के रेट से अपना जीवन जीना चाहते हैं. ऐसे लोगों को भी सफेद कपड़े पहनने का नियम होता है. जिससे संसार का मोह-माया, लोभ और लालच का उन पर असर न पड़े.
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